वायु-प्रदूषण और वैश्विक समन्वय

वर्तमान समय में विश्व की नब्बे प्रतिशत जनसंख्या बहुत ज़्यादा प्रदूषित वायु में साँस लेने को मजबूर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि विश्व के प्रत्येक दस में से नौ लोग बहुत ज़्यादा प्रदूषित वायु में साँस लेते हैं।

संजय ठाकुर

विश्व भर में वायु-प्रदूषण की जो स्थिति है उससे निपटने के लिए वैश्विक समन्वय की ज़रूरत है। वैश्विक समन्वय स्थापित करने में संयुक्त राष्ट्र की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। वायु-प्रदूषण कम करने और साँस लेने के लिए स्वच्छ वायु की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र को विश्व भर की सरकारों को प्रेरित करना होगा। हालाँकि संयुक्त राष्ट्र ने इस दिशा में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में सामाजिक एवं राजनीतिक चालक कार्रवाई क्षेत्र (सोशल ऐण्ड पॉलिटिकल ड्राइवर्स ऐक्शन एरिया) के अन्तर्गत स्वच्छ वायु पहल (क्लीन एयर इनिशेटिव) नाम से एक कार्यक्रम चला रखा है और विश्व भर की सरकारों से इससे जुड़ने का आह्वान किया है, लेकिन यह अभियान अभी यथेष्ट रूप से वास्तविकता के धरातल पर नहीं उतर पाया है। संयुक्त राष्ट्र के ऐसे अभियानों का उद्देश्य तो यही है कि जलवायु-परिवर्तन और वायु-प्रदूषण से सम्बन्धित नीतियों में एकरूपता लाकर लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके, लेकिन वैश्विक समन्वय के बग़ैर ऐसे किसी भी कार्यक्रम का कोई अर्थ नहीं है।
वर्तमान समय में विश्व की नब्बे प्रतिशत जनसंख्या बहुत ज़्यादा प्रदूषित वायु में साँस लेने को मजबूर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि विश्व के प्रत्येक दस में से नौ लोग बहुत ज़्यादा प्रदूषित वायु में साँस लेते हैं। यह घर से बाहरी और घरेलू, दोनों तरह का वायु-प्रदूषण है जो विश्व भर में प्रतिवर्ष लगभग सत्तर लाख लोगों की मौत का कारण बनता है। इनमें बाहरी वायु-प्रदूषण से मरने वाले लोगों की संख्या लगभग बयालीस लाख और घरेलू वायु-प्रदूषण से मरने वाले लोगों की संख्या लगभग अठत्तीस लाख है। इस तरह वायु-प्रदूषण अब केवल बड़े शहरों की ही समस्या नहीं रह गया है बल्कि यह छोटे शहरों और गाँवों तक भी पहुँच गया है।
स्विस संगठन आईक्यू एयर द्वारा तैयार की गई वैश्विक स्तर पर जारी विश्व वायु गुणवत्ता पर आधारित एक रिपोर्ट के अनुसार चीन का शिनजियाँग विश्व का सबसे प्रदूषित शहर है। इसके बाद भारत के ग़ाज़ियाबाद का स्थान आता है। भारत की राजधानी दिल्ली विश्व का दसवां सबसे प्रदूषित शहर है और इसे वैश्विक स्तर पर सबसे प्रदूषित राजधानी के रूप में चिन्हित किया गया है। चीन के शिनजियाँग के बाद विश्व के नौ सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहर भारत के ही हैं। इनमें ग़ाज़ियाबाद के बाद बुलन्दशहर, बिसरख जलालपुर, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, कानपुर, लखनऊ, भिवाड़ी और दिल्ली हैं। इनके बाद मेरठ, आगरा, मुज़फ़्फ़रनगर, फ़रीदाबाद, जींद, हिसार, फ़तेहाबाद, बन्धवाड़ी, गुरुग्राम, यमुनानगर, रोहतक, धारूहेड़ा और मुज़फ़्फ़रपुर आते हैं। विश्व के दो सौ सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों में लगभग नब्बे प्रतिशत शहर भारत और चीन के हैं। भारत के लिए यह बात चिन्ता बढ़ाने वाली है कि विश्व के तीस सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों में बाईस भारत के हैं। इस तरह भारत विश्व भर के सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों की रैंकिंग में सबसे ऊपर है। भारत में वायु-प्रदूषण मुख्य रूप से परिवहन, उद्योग, निर्माण, अपशिष्ट जलाने, खाना पकाने के लिए बायोमास जलाने, बिजली-उत्पादन और फ़सल के अवशेष जलाने से होता है।
हालाँकि वायु-प्रदूषण पूरे विश्व की समस्या है, लेकिन इसे रोकने को लेकर सभी देशों में एक जैसी गम्भीरता नहीं है। हालाँकि भारत उन देशों में है जहाँ वायु-प्रदूषण गम्भीर स्तर पर है, लेकिन इसे रोकने में भारत के प्रयास नाकाफ़ी ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र में देश बुरी तरह पिछड़ा हुआ है। भारत के पड़ौसी देश चीन में भी वायु-प्रदूषण बड़े पैमाने पर है, लेकिन वहाँ इस समस्या से निपटने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं वो भारत से कहीं ज़्यादा हैं जिस कारण वायु-प्रदूषण से लड़ने में भारत चीन से पीछे है। वायु-प्रदूषण के ख़िलाफ़ चीन की लड़ाई और सफलता का अन्दाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2013 में विश्व के बीस सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों में चीन के पेइचिंग सहित चौदह शहर थे और वर्ष 2016 में यह संख्या चार रह गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार पेइचिंग में वर्ष 2013 के बाद वायु-प्रदूषण के स्तर में लगातार गिरावट आई है। यह वायु-प्रदूषण की समस्या से निपटने के चीन के प्रयासों का ही नतीजा है कि वहाँ वायु-प्रदूषण पर इतना नियन्त्रण पाया जा सका है। हालाँकि भारत में भी वायु-प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मन्त्रालय के अन्तर्गत अखिल भारतीय स्तर पर राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (नैशनल क्लीन एयर प्रोग्राम) चलाया गया है, लेकिन अभी तो यह औपचारिकता भर ही कहा जा सकता है। इस कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए तो इससे वायु-प्रदूषण की समस्या से निपटने में निश्चित ही सहायता मिल सकती है।
वायु-प्रदूषण का कोई एक कारण नहीं है बल्कि कई कारण मिलकर वायु-प्रदूषण की एक विकराल समस्या को खड़ा करते हैं। इस समस्या को समग्र रूप से समझने के लिए इन सभी कारणों को समझना ज़रूरी है। वायुमण्डल में जब एक या एक से ज़्यादा वायु-प्रदूषकों की मात्रा इतनी ज़्यादा बढ़ जाती है कि वायु की गुणवत्ता का इतना ह्रास हो जाए कि वह जन-समुदाय के लिए हानिकारक हो जाए तो वायु-प्रदूषण होता है। उत्पत्ति के आधार पर ये वायु-प्रदूषक प्राकृतिक और मानव-जनित, दो तरह के होते हैं। प्राकृतिक वायु-प्रदूषक जैविक पदार्थों के सड़ने से निकलने वाली गैस, वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों, पौधों के पराग-कण और ज्वालामुखी विस्फोट जैसे प्राकृतिक स्रोतों या प्राकृतिक क्रियाकलापों से उत्पन्न होते हैं। सामान्यतया प्राकृतिक वायु-प्रदूषकों की तीव्रता कम होती है और इनसे ज़्यादा नुकसान नहीं होता। मानव-जनित वायु-प्रदूषक प्राथमिक और द्वितीयक, दो तरह के होते हैं। प्राथमिक वायु-प्रदूषकों का निर्माण सूर्य की विद्युत-चुम्बकीय विकिरणों के प्रभाव से और द्वितीयक वायु-प्रदूषकों का निर्माण सामान्य वायुमण्डलीय यौगिकों के बीच रासायनिक अभिक्रियाओं से होता है। हरित गृह प्रभाव (ग्रीन हॉउस इफ़ैक्ट), जो हरित गृह गैसेस (ग्रीन हॉउस गैसेस) कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और फ़्लोरिनेटिड गैसेस के कारण होता है, भी वायु-प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। ग्रीनहॉउस गैसेस के कारण वायुमण्डल की ओज़ोन परत घटती है जिससे सामान्य तापमान में वृद्धि होती है। सामान्य तापमान में वृद्धि से वायुमण्डल बुरी तरह प्रभावित होता है। वायुमण्डल पर पड़े ऐसे प्रभाव को मानव-स्वास्थ्य पर पड़े गम्भीर प्रभावों के रूप में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस तरह प्राकृतिक और मानव-जनित वायु-प्रदूषकों से वायुमण्डल में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, मीथेन, क्लोरोफ़्लोरोकार्बन, वाष्पशील कार्बनिक पदार्थ, ठोस कणीय पदार्थ, लौह-कण, ओज़ोन गैस, सीसा, विकिरण, रासायनिक ऑक्सीडैण्ट, निलम्बित कणीय पदार्थ आदि यौगिकों व ऊर्जा का निर्माण होता है जो विश्व भर में वायु-प्रदूषण की गम्भीर स्थिति को जन्म देते हैं। कई बार वायु-प्रदूषण की यह स्थिति इतनी ज़्यादा गम्भीर हो जाती है कि बहुत-से देशों के सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों में यह असहनीय स्तर पर पहुँच जाता है। भारत में इस तरह की स्थिति उत्तर भारत में बनती है जहाँ के कुछ क्षेत्रों में कई बार जन-स्वास्थ्य-आपातकाल तक घोषित करना पड़ता है। बीते समय में दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में घोषित जन-स्वास्थ्य-आपातकाल इसका जीता-जागता उदाहरण है। उस समय दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में निर्माण-कार्यों सहित पटाखे फोड़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। यह समस्या यहीं की नहीं है बल्कि वायु-प्रदूषण देश के कई दूसरे शहरों में भी कई बार ख़तरनाक स्तर को पार कर जाता है।
वायु-प्रदूषण का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वायु-प्रदूषण के गम्भीर प्रभावों को फेफड़े के सामान्य रोगों, दमा और हृदय रोगों के अतिरिक्त नवजात शिशुओं के निर्धारित समय से पहले जन्म लेने (प्रीमैच्योर बर्थ), शिशु के आकार व भार में कमी (लो बर्थ वेट) और मानसिक विकास अवरोध (मैण्टल डैवैलपमैण्ट ऑब्स्टेकल) जैसी समस्याओं के रूप में भी देखा जा रहा है।
वर्तमान समय में वायु-प्रदूषण से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर प्राथमिकता के आधार पर त्वरित और प्रभावी कदम उठाए जाने की ज़रूरत है। विश्व भर में दैनिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन का जो इस्तेमाल किया जा रहा है उसे सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर कम करना होगा। ज़्यादा से ज़्यादा घरों में सोलर पैनल लगवाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। स्थाई और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के इस्तेमाल को प्राथमिकता देने पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए। भारत में वायु-प्रदूषण का एक बड़ा कारण यातायात है। यहाँ वायु-प्रदूषण रोकने के लिए निजी वाहनों के स्थान पर सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल वर्तमान समय की एक बड़ी ज़रूरत है। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाना चाहिए ताकि लोगों को निजी वाहनों के इस्तेमाल से रोका जा सके। सरकार को सार्वजनिक यातायात व्यवस्था को सुदृढ़ करके लोगों को सार्वजनिक वाहनों के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करना चाहिए। सरकारी कार्यालयों के स्तर पर भी वाहनों का इस्तेमाल कम से कम किया जाना चाहिए।
विश्व भर की सरकारों को पर्यावरण-संरक्षण से सम्बन्धित कड़े क़ानून बनाने होंगे ताकि लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाकर उन्हें वायु प्रदूषण के प्रति सचेत किया जा सके। वायु-प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे सभी देशों को वायु-प्रदूषण को रोकने के दृढ़ संकल्प और ठोस योजनाओं के साथ एक मंच पर आना होगा। वैश्विक साझा कार्रवाई से वायु-प्रदूषण पर निश्चित ही नियन्त्रण पाया जा सकता है। ऐसे समन्वित प्रयास वायु-गुणवत्ता और जलवायु-परिवर्तन से सम्बन्धित नीतियों को लागू करने में भी सहायक होंगे।

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