शिक्षा और अर्थव्यवस्था का संकट

वर्तमान परिस्थितियों के विनाशकारी प्रभाव के चलते दक्षिण-एशियाई क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर सबसे बुरी आर्थिक शिथिलता आने वाली है। विद्यालय बन्द रहने से दक्षिण-एशियाई क्षेत्र में सबसे बड़ा आर्थिक नुकसान भारत को उठाना पड़ेगा जो चालीस अरब अमरीकी डॉलर से अधिक हो सकता है। वर्तमान परिस्थितियों में विश्व भर में डेढ़ सौ करोड़ से ज़्यादा बच्चों के स्कूल बन्द रहे हैं जिनमें से सत्तर करोड़ बच्चे तो भारत-बांग्लादेश जैसे दक्षिण एशियाई देशों के ही हैं। वर्तमान परिस्थितियों में विश्व भर में पचपन लाख बच्चे पढ़ाई छोड़ सकते हैं जिससे शिक्षा और अर्थव्यवस्था, दोनों का बड़ा नुकसान होगा। इस उभरे संकट से एक पीढ़ी के छात्रों की दक्षता पर आजीवन प्रभाव पड़ सकता है। इस तरह वर्तमान परिस्थितियों को शिक्षा और अर्थव्यवस्था, दोनों के संकट के रूप में देखा जा सकता है जिससे निपटना मुश्किल होगा।

संजय ठाकुर

वर्तमान परिस्थितियों के चलते विद्यालयों के बन्द रहने से विश्व भर में सभी देशों को अपने सकल घरेलू उत्पाद के एक बड़े भाग से हाथ धोना पड़ेगा। इस संकट में शिक्षा के प्रभावित होने से ही अरबों रुपये की वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बड़ी चोट पड़ेगी जिसकी प्रबलता दक्षिण-एशियाई देशों के सन्दर्भ में सबसे अधिक होगी। वर्तमान संकट से पहले तक इन देशों में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पर प्रतिवर्ष चालीस अरब अमरीकी डॉलर ख़र्च किए जा रहे थे, लेकिन विद्यालयों के बन्द होने से जो आर्थिक नुकसान होगा वह इससे भी कहीं अधिक है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार विद्यालय बन्द रहने से दक्षिण-एशियाई क्षेत्र में बासठ अरब बीस करोड़ अमरीकी डॉलर का नुकसान हो सकता है। इस रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि अगर स्थिति और अधिक निराशाजनक रही तो यह नुकसान अट्ठासी अरब अमरीकी डॉलर तक पहुँच सकता है। विश्व बैंक की इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वर्तमान परिस्थितियों के विनाशकारी प्रभाव के चलते दक्षिण-एशियाई क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर सबसे बुरी आर्थिक शिथिलता आने वाली है। विद्यालय बन्द रहने से दक्षिण-एशियाई क्षेत्र में सबसे बड़ा आर्थिक नुकसान भारत को उठाना पड़ेगा जो चालीस अरब अमरीकी डॉलर से अधिक हो सकता है। वर्तमान परिस्थितियों में विश्व भर में डेढ़ सौ करोड़ से ज़्यादा बच्चों के स्कूल बन्द रहे हैं जिनमें से सत्तर करोड़ बच्चे तो भारत-बांग्लादेश जैसे दक्षिण एशियाई देशों के ही हैं। वर्तमान परिस्थितियों में विश्व भर में पचपन लाख बच्चे पढ़ाई छोड़ सकते हैं जिससे शिक्षा और अर्थव्यवस्था, दोनों का बड़ा नुकसान होगा। इस उभरे संकट से एक पीढ़ी के छात्रों की दक्षता पर आजीवन प्रभाव पड़ सकता है। इस तरह वर्तमान परिस्थितियों को शिक्षा और अर्थव्यवस्था, दोनों के संकट के रूप में देखा जा सकता है जिससे निपटना मुश्किल होगा।
विद्यालय बन्द होने के कारण पड़े प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से कई देशों ने कुछ कदम तो अवश्य उठाए हैं जिनमें ऑनलाइन शिक्षा भी एक है, लेकिन इस माध्यम से पढ़ाई करवाने में उन्हें बहुत कठिनाइयां आ रही हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट में भी इस बात को स्पष्ट किया गया है कि ऑनलाइन माध्यमों से शिक्षा उपलब्ध करवाने में बड़ी समस्याएं हैं। अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली पर असन्तोष जता चुके हैं। एक तो ऑनलाइन शिक्षा माध्यमों तक सभी छात्रों की पहुँच न होने से यह शिक्षा-प्रणाली अभी अधिकतर छात्रों से बहुत दूर है, दूसरे शिक्षा की इस व्यवस्था से सामंजस्य स्थापित करना अधिकाँश छात्रों के लिए कठिन है। ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली के सम्बन्ध में तकनीक से जुड़ी भी कई समस्याएं हैं जिनसे पार पाना सरल नहीं है। इनके अतिरिक्त इस शिक्षा-प्रणाली को घरेलू वातावरण भी प्रभावित करता है। ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली की अव्यावहारिकता को समझते हुए शिक्षा-विशेषज्ञ भी विभिन्न अवसरों पर इसकी कमियों को रेखांकित कर चुके हैं। वर्तमान समय में ऑनलाइन शिक्षा की विवशता के चलते भी इन विशेषज्ञों ने इसके सीमित उपयोग पर ही बल दिया है। इन विशेषज्ञों ने ऑनलाइन शिक्षा की कक्षाओं को अत्यन्त सीमित कर देने के लिए भी कहा है। वैसे भी, एक छात्र का जो शारीरिक और मानसिक विकास विद्यालय के प्राँगण या कक्षा में हो सकता है वह घर के कमरे में मोबाइल फोन या कमप्यूटर के मॉनिटर के सामने बैठकर नहीं हो सकता। ऑनलाइन शिक्षा के चलते उन छात्रों का शारीरिक व मानसिक विकास तो दूसरे छात्रों से कहीं अधिक अधूरा रह जाता है जो पहले ही अपेक्षाकृत अधिक शारीरिक कमियां लिए हुए हैं।
भारत के सन्दर्भ में देखें तो ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली से सम्बन्धित सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर यह प्रश्न भी उठता है कि क्या साधन, संसाधन और व्यापकता की दृष्टि से ऑनलाइन शिक्षा के लिए देश वास्तव में तैयार है! इस वास्तविकता से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता कि देश की एक बहुत बड़ी जनसंख्या अभी भी इण्टरनैट-सेवाओं से दूर है। ऐसे बच्चों की एक बड़ी संख्या है जिनके पास न तो टैलीविजन हैं, न स्मार्टफोन। बहुत-से क्षेत्रों में ऑनलाइन-सुविधा नहीं है या सुचारु नहीं है। देश में इस समय इण्टरनैट तक इकत्तीस प्रतिशत अर्थात लगभग पैन्तालीस करोड़ लोगों की ही पहुँच है। इस संख्या में वृद्धि भी होती है तो यह संख्या वर्ष 2021 तक सत्तर से पिचहत्तर करोड़ के आसपास ही पहुँचेगी। यह संख्या भी देश की कुल जनसंख्या की लगभग आधी ही है। वर्तमान समय में देश में स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या लगभग उनत्तीस करोड़ है। यदि इसमें भी वृद्धि होती है तो यह संख्या वर्ष 2021 तक सैन्तालीस करोड़ के आसपास तक ही पहुँच पाएगी।
एक अध्ययन के अनुसार विभिन्न विश्वविद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर रहे कुल छात्रों में से केवल साढ़े बारह प्रतिशत छात्रों के घरों में इण्टरनैट उपलब्ध है। विश्वविद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने वाले कुल शहरी छात्रों में से केवल इकतालीस प्रतिशत ही ऐसे हैं जिनके घर में इण्टरनैट की सुविधा है। उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे कुल ग्रामीण छात्रों में से केवल अट्ठाईस प्रतिशत छात्रों के घर में इण्टरनैट है। देश के विभिन्न राज्यों में भी इण्टरनैट की स्थिति ठीक नहीं है। पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे राज्यों में तो सात से आठ प्रतिशत ग्रामीण घरों में ही इण्टरनैट उपलब्ध है। इस प्रकार देश में ऑनलाइन शिक्षा की स्थिति को समझा जा सकता है।
शारीरिक रूप से अक्षम छात्र ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली का यथोचित उपयोग करने में सफल नहीं हो पाते। ऐसे छात्र न तो इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों का ही यथेष्ट व समयबद्ध संचालन कर पाते हैं, न ही अपने शिक्षकों से ऑनलाइन संवाद ही स्थापित कर पाते हैं। विभिन्न अवसरों पर ऐसा होता है कि उन्हें समझ ही नहीं आता कि ऑनलाइन कक्षा में हो क्या रहा है! ऐसे में छात्रों को बाह्य स्रोतों से सहायता लेनी पड़ती है और व्यक्तिगत रूप से ही अध्ययन की व्यवस्था करनी पड़ती है। जो छात्र बाह्य स्रोतों से सहायता नहीं ले पाते उनका अध्ययन अधूरा ही रह जाता है। बधिर छात्रों के लिए तो ऑनलाइन शिक्षा और भी अधिक कठिन है क्योंकि उनके द्वारा प्रयोग की जाने वाली साँकेतिक भाषा के लिए दुभाषिये की आवश्यकता पड़ती है। दुभाषिया-सेवाओं की उपलब्धता इतनी सरल नहीं है। इसके लिए भारतीय साँकेतिक भाषा अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण केन्द्र से सम्पर्क करना पड़ता है। इसी प्रकार अन्य रूप से शारीरिक अक्षमता लिए छात्रों की भी ऑनलाइन शिक्षा के सम्बन्ध में समस्याएं हैं। उदाहरण के लिए कृत्रिम अंगों का इस्तेमाल करने वाले छात्र ऑनलाइन शिक्षा से सम्बन्धित उपकरणों का प्रभावी उपयोग नहीं कर पाते।
भारत में पहले ही शिक्षा के सम्बन्ध में बड़ी चुनौतियां हैं। वर्ष भर के पूरे शैक्षणिक सत्र में कक्षाओं में भी शिक्षक पाठ्यक्रम पूरा नहीं करते या कर पाते, तो ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली में पाठ्यक्रम की स्थिति को समझा जा सकता है। यह स्थिति विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में एक-सी है। ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली में परीक्षाएं, विशेषकर वार्षिक परीक्षाएं करवाना भी एक बड़ी समस्या है। परीक्षाएं चाहे किसी भी स्तर की हों, इन्हें ऑनलाइन स्तर पर करवाने से इनमें विवाद का उठना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। देश में जो परीक्षाएं शिक्षण-संस्थानों की कक्षाओं में करवाई जाती हैं वो भी विवादों से अछूती नहीं हैं, तो ऐसे में ऑनलाइन परीक्षाओं की परिणति को भली प्रकार समझा जा सकता है। अधिकाँश शिक्षण-संस्थान भी ऑनलाइन परीक्षाओं के पक्ष में नहीं हैं।
व्यावहारिक न होने से ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली शिक्षा की आवश्यकताओं की पूर्ति करने से कहीं अधिक शिक्षा के एक बड़े बाज़ार के रूप में ही उभर रही है। भारत में वर्ष 2016 से वर्ष 2020 की अवधि के दौरान ऑनलाइन शिक्षा के व्यवसाय में आठ गुणा की वृद्धि हुई है जो वर्ष 2016 के लगभग पच्चीस करोड़ डॉलर की तुलना में वर्ष 2020 में लगभग दो अरब डॉलर तक पहुँच गया है। अभी तो वर्तमान स्थिति को उत्पन्न हुए अधिक समय नहीं हुआ है कि ऑनलाइन शिक्षा की कितनी ही दुकानें खुल चुकी हैं! इससे यह बात समझी जा सकती है कि ऑनलाइन शिक्षा पर आवश्यकता से कहीं अधिक या पूरी निर्भरता शिक्षा और छात्रों को किस दशा में पहुँचा सकती है। ऐसी शिक्षा तो शिक्षा उपलब्ध करवाने से कहीं अधिक बाज़ार का ही पोषण करेगी। वर्तमान समय में देश में आभासी अनुशिक्षण केन्द्र बनाने की होड़-सी लग गई है। शिक्षा के ऐसे ‘अड्डे’ थोड़े ही दिनों में बड़ी संख्या में तैयार हो गए हैं। देश में ऐसा वातावरण बना दिया गया है कि शिक्षा विद्यालयों व कक्षाओं से बाहर ऑनलाइन अनुशिक्षण संस्थानों और ऑनलाइन कक्षाओं में दिखाई दे।
वर्तमान समय में शिक्षा-व्यवस्था को सामान्य स्थिति में लाना बहुत आवश्यक है। ऑनलाइन शिक्षा को व्यावहारिक बनाने में अभी बहुत समय लग सकता है जिससे यह कम से कम वर्तमान समय में तो यथेष्ट शिक्षा उपलब्ध करवाने का विकल्प नहीं हो सकती। ऐसे में पारम्परिक शिक्षा पद्धति की कक्षाओं के संचालन की सहजता को पूर्ववत स्थिति में लाने के गम्भीर प्रयास किए जाने चाहिए। शिक्षा का एक ऐसा समन्वयकारी और समावेशी ढाँचा बनाने की आवश्यकता है जिसमें ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली पारम्परिक शिक्षा पद्धति की केवल आवश्यकताओं को पूरा करने में ही सहायक हो, न कि इसे इसके विकल्प के रूप में देखा जाए। ऐसे प्रयासों से शिक्षा और बाधित शिक्षा से प्रभावित अर्थव्यवस्था, दोनों को सम्भाला जा सकता है।

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