संस्कृति के पंख पर ख़्वाबों की उड़ान भरती सुजाता के सोलमा होने की दास्तान

सुजाता संस्कृति के पंख पर ख़्वाबों की उड़ान भरना चाहती है। यही उसकी उत्कट इच्छा भी है और यही उसका शौक़ भी। अपनी इस यात्रा में उसने अपनी पहली उड़ान जब भरी तो लोग उसे सोलमा कहने लगे।

संजय ठाकुर
वह संस्कृति के पंख पर ख़्वाबों की उड़ान भरना चाहती है। यही उसकी उत्कट इच्छा भी है और यही उसका शौक़ भी। अपनी इस यात्रा में उसने अपनी पहली उड़ान जब भरी तो लोग उसे सोलमा कहने लगे। यह नाम उसका इतना अपना हो गया कि उस द्वारा अभिनीत पहली तीन ऐल्बम पर इसी का प्रभाव है। यह बात हो रही है हिमाचल प्रदेश के मण्डी ज़िला की करसोग तहसील के बगशाड़ गाँव से सम्बन्ध रखने वाली और हिमाचली संस्कृति को अपने अभिनय से पर्दे पर सजाने का शौक़ रखने वाली सुजाता नेगी की।


सुजाता ने अब तक तीन ऐल्बम में काम किया है। ये तीनों ही ऐल्बम हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी अंचल की पृष्ठभूमि पर आधारित हैं। सुजाता की अभिनय-यात्रा की शुरुआत जिस ऐल्बम से हुई उसका नाम सोलमा है। इसमें उन्होंने ऐसा अभिनय किया है कि सोलमा किरदार जैसे उन्हीं में रच-बस गया हो। इसका रंग इसे देखने वाले लोगों पर भी चढ़ा। इतना कि सुजाता को ज़्यादातर लोग सोलमा नाम से ही जानने लगे। शायद इसी का प्रभाव रहा हो कि उनकी दूसरी ऐल्बम को सोलमा-2 नाम दिया गया। हालाँकि सुजाता की तीसरी ऐल्बम का नाम डीजे मामटी है, लेकिन इसमें भी पहला गीत ‘सोलमा लाड़िए….’ सोलमा से ही प्रभावित है।
सुजाता का जन्म हिमाचल प्रदेश के शिमला ज़िला के सुन्नी में हुआ। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा शिमला के विकासनगर स्थित विद्यालय सरस्वती विद्या मन्दिर से हुई। इसके बाद सुजाता ने स्नातक और समाज शास्त्र में स्नातकोत्तर की शिक्षा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से प्राप्त की।
सुजाता हिमाचल प्रदेश सचिवालय में लिपिक के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हैं। यूँ तो उन्हें अभिनय का शौक़ बचपन से ही था, लेकिन पहले उन्हें इसे लोगों के सामने लाने का अवसर नहीं मिल पाया। सुजाता को अपनी अभिनय-क्षमता का परिचय करवाने का पहला अवसर भी हिमाचल प्रदेश सचिवालय में ही मिला। हुआ यूँ के सचिवालय का एक साँस्कृतिक क्लब है जिससे जुड़ने का अवसर उन्हें भी मिला। यहीं सुजाता की अभिनय-प्रतिभा बाहर आई। दरअसल अपनी इस प्रतिभा से उनका अपना परिचय भी पहली बार यहीं हुआ। इसके बाद सुजाता को क्लब के सदस्यों का प्रोत्साहन भी मिला।


सुजाता कहती हैं कि अपने काम से वो हिमाचल की संस्कृति को आगे बढ़ा रही हैं। वो कहती हैं कि अगर उन्हें पहाड़ी संस्कृति को प्रोमोट करने का अवसर मिला तो वो फ़िल्म और टैलिविजन जैसे अभिनय के दूसरे मंचों पर भी अभिनय करेंगी। सुजाता का कहना है कि वो ख़ुद को सौभाग्यशाली समझती हैं कि उन्हें हिमाचल की संस्कृति को आगे बढ़ाने का अवसर मिला। अपनी उपलब्धि में सुजाता अपने परिवार के सहयोग का ज़िक्र करना भी नहीं भूलती।

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