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कविताएं

वातायन

रामधारी सिंह दिनकर मैं झरोखा हूँ कि जिसकी टेक लेकर विश्व की हर चीज़ बाहर झाँकती है। पर नहीं मुझ पर झुका है विश्व तो उस ज़िन्दगी पर जो मुझे छूकर सरकती जा रही है। जो घटित होता है, यहाँ से दूर है। जो घटित होता, यहाँ से पास है। कौन है अज्ञात?…

जनहित का काम

केदारनाथ सिंह वह एक अद्भुत दृश्य था मेह बरसकर खुल चुका था खेत जुतने को तैयार थे एक टूटा हुआ हल मेड़ पर पड़ा था और एक चिड़िया बार-बार बार-बार उसे अपनी चोंच से उठाने की कोशिश कर रही थी मैंने देखा और मैं लौट आया क्योंकि मुझे लगा मेरा वहाँ…

रेहड़ी-फड़ी वाले

दिनेश शर्मा क़ानून की बन्द आँख पर सजा ली है तूने अपनी रेहड़ी और खरोंच दिया है सारा विधान व्यवस्था का सौन्दर्य डगमग करने वाले ओ सड़क छाप तुम होते हो कौन। अवैध कॉलोनियों में सोया जगा दिया है तूने दम्भ से लबालब प्रशासन थाने में चढ़ा, उतार दिया है…

अब वो रास्ते नहीं

सत्य नारायण स्नेही गाँव में आ गई है सड़क अब नहीं रही पगडण्डियां अब वो रास्ते नहीं जिनसे जाते थे हम स्कूल पशु जाते थे चरागाह पहुँचते थे लोग दूसरे गाँव हाट-घराट-बाज़ार। वो रास्ते जोड़ते थे एक घर से दूसरा घर खेत-खलियान बाग़ान उन पर खेलते थे बच्चे…

ज़िक्र

उर्वशी भट्ट कोई हवा का झोंका लहककर मेज़ पर करीने से रखी किताबों से उलझ जाता है कई पन्ने बिखरकर तितलियों की मानिन्द मेरे आसपास मँडराते हैं जिनके कई हर्फ़ों पर तुमने लकीरें खींची थीं। दीवार पर टंगे कैलेण्डर के कई पन्ने फड़फड़ाते हुए पीछे की तरफ़…

हार कहाँ हमने मानी है

गार्गी आर्या हार कहाँ हमने मानी है, बस यही तो मनमानी है। जीवन के सभी पलों को जीते हम जा रहे है, मुश्किल भरी राहों में भी मंज़िल को पा रहें है, ख़ुश रहने की यही निशानी है, हार कहाँ हमने मानी है। जब कुछ करेंगे तो ज़रूर पाएंगे, जीत के गुणगान…

चींटियां

कुमार कृष्ण धरती पर जहाँ-जहाँ होती है मिठास वहाँ-वहाँ होती हैं चींटियां चींटियां जानती हैं उम्मीद का, भविष्य का व्याकरण जानती हैं कुनबे की कला मेहनत-मज़दूरी का गणित काश! मिली होती चींटियों को भाषा सुना पातीं अपनी पीड़ा दिन-रात मशक्कत करते…

आह! वेदना मिली विदाई

जय शंकर प्रसाद आह! वेदना मिली विदाई मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई छलछल थे संध्या के श्रमकण आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण मेरी यात्रा पर लेती थी नीरवता अनंत अँगड़ाई श्रमित स्वप्न की मधुमाया में गहन-विपिन की तरु छाया में पथिक…

किसान

मैथिलीशरण गुप्त हेमन्त में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्योम है पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है हो जाये अच्छी भी फ़सल, पर लाभ कृषकों को कहाँ खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ आता महाजन के यहाँ वह अन्न सारा अन्त में अधपेट…

घोर धनुर्धर, बाण तुम्हारा सब प्राणों को पार करेगा

गजानन माधव मुक्तिबोध घोर धनुर्धर, बाण तुम्हारा सब प्राणों को पार करेगा तेरी प्रत्यंचा का कम्पन सूनेपन का भार हरेगा हिमवत, जड़, निःस्पन्द हृदय के अन्धकार में जीवन-भय है तेरे तीक्ष्ण बाण की नोकों पर जीवन-संचार करेगा। तेरे क्रुद्ध वचन बाणों…