वैश्विक भुखमरी और भारत

विश्व में सबसे ज़्यादा कुपोषित लोग एशिया में हैं जिनकी संख्या लगभग अठत्तीस करोड़ है। इसके बाद लातिनी अमरीका और कैरिबियाई क्षेत्र का स्थान है। वर्तमान समय में भोजन के उत्पादन, वितरण और खपत से सम्बद्ध क्रियाकलापों और प्रक्रमों की कोताहियां और परिक्षीणताएं और ज़्यादा गहरी होती जा रही हैं

संजय ठाकुर

संयुक्त राष्ट्र की इस चेतावनी को गम्भीरता से लिया जाना चाहिए कि वर्तमान संकट विश्व भर में करोड़ों और लोगों को भुखमरी की ओर धकेल सकता है। यूँ तो यह समस्या पूरे विश्व की है, लेकिन भारत के सम्बन्ध में यह स्थिति ज़्यादा चिन्ताजनक हो जाती है क्योंकि यहाँ पहले ही एक बड़ी जनसंख्या भुखमरी की शिकार है। यहाँ सकारात्मक पहलू यह है कि देश के पास इससे निपटने के पर्याप्त साधन हैं। ज़रूरत है, तो इस सम्बन्ध में बनाई गई नीतियों और योजनाओं को भ्रष्टाचार-मुक्त व्यवस्था के अन्तर्गत प्रभावी ढंग से कार्यरूप देने की। भुखमरी को भारत के सन्दर्भ में देखें तो दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति और सुगठित प्रशासनिक समझबूझ से इससे निपटा जा सकता है क्योंकि देश में अन्न का विपुल भण्डार है। वर्तमान समय में भारत के पास चीन के बाद विश्व का सबसे बड़ा अन्न-भण्डार है जिस पर सरकार प्रतिवर्ष सात सौ पचास अरब रुपये अर्थात तेरह अरब अस्सी करोड़ डॉलर ख़र्च करती है। यह धनराशि सकल घरेलू उत्पाद की लगभग एक प्रतिशत है। इस अन्न को लोगों तक पहुँचाया जाना चाहिए। इसके लिए कोई नई नीति या योजना के निर्धारण की भी ज़रूरत नहीं है बल्कि देश में मौजूद खाद्यान्न वितरण व्यवस्था के अन्तर्गत ऐसा किया जा सकता है।
यह एक बहुत बड़ी वास्तविकता है कि विश्व भर में एक बड़ी जनसंख्या के पास पर्याप्त भोजन नहीं है। ऐसे में सभी को पौष्टिक आहार उपलब्ध करवाना एक बड़ी चुनौती है। विश्व में सबसे ज़्यादा कुपोषित लोग एशिया में हैं जिनकी संख्या लगभग अठत्तीस करोड़ है। इसके बाद लातिनी अमरीका और कैरिबियाई क्षेत्र का स्थान है। वर्तमान समय में भोजन के उत्पादन, वितरण और खपत से सम्बद्ध क्रियाकलापों और प्रक्रमों की कोताहियां और परिक्षीणताएं और ज़्यादा गहरी होती जा रही हैं।
विश्व में खाद्य सुरक्षा एवं पोषण की स्थिति के दृष्टिगत संयुक्त राष्ट्र की पाँच एजैन्सियों, खाद्य व कृषि संगठन; अन्तर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष; संयुक्त राष्ट्र बाल कोष; विश्व खाद्य कार्यक्रम और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मिलकर तैयार की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान समय में उपलब्ध विश्व के आर्थिक परिदृश्य पर आधारित अनुमान के अनुसार वर्ष 2020 में भुखमरी की सूची में आठ करोड़ तीस लाख से तेरह करोड़ बीस लाख अतिरिक्त लोग जुड़ सकते हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष ही विश्व में भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या में लगभग एक करोड़ की वृद्धि हुई थी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्ष भुखमरी में जकड़े लोगों की संख्या लगभग उनहत्तर करोड़ थी जो कि विश्व की कुल जनसंख्या की लगभग नौ प्रतिशत है। इसका अर्थ यह हुआ कि विश्व भर में नौ में से एक व्यक्ति भूखा है। वर्ष 2014 के बाद पिछले छह वर्षों में भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या में छह करोड़ की वृद्धि दर्ज की गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार बीते पाँच वर्षों में भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है। वर्तमान परिस्थितियों के चलते यह समस्या और भी गम्भीर रूप धारण करती चली जा रही है।
संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि आर्थिक मन्दी और जलवायु से सम्बन्धित घटनाओं ने और भी ज़्यादा लोगों को भुखमरी की ओर धकेला है। महंगाई के कारण पोषक आहार अभी भी लोगों की पहुँच से दूर है। वर्तमान समय में विश्व भर में लगभग तीन अरब लोगों के पास पौष्टिक आहार सुनिश्चित करने का कोई साधन नहीं है। इससे अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि विश्व भर में भुखमरी की स्थिति कितनी विकट है। अब इस सूची में लगातार हो रही वृद्धि से भुखमरी और भी गम्भीर रूप धारण कर रही है।
भारतीय खाद्य निगम द्वारा संचालित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीऐस) व्याप्ति और सार्वजनिक व्यय के दृष्टिगत देश का सबसे महत्वपूर्ण खाद्य सुरक्षा-तन्त्र है जिसे कम कीमत पर खाद्यान्न के वितरण के लिए आरम्भ किया गया था, लेकिन यह प्रणाली बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के कारण वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति में असफल रही है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली से वितरित किया जाने वाला अन्न उचित मूल्य की दुकानों की बजाय कारखानों में पहुँच जाता है। यहाँ यह कहना भी उपयुक्त ही है कि राशन की दुकानों द्वारा जितना भी अन्न वितरित किया जाता है वह ग़रीब लोगों की खाद्य खपत की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में अन्न की खपत का औसत स्तर प्रति व्यक्ति प्रतिमाह सिर्फ़ एक किलोग्राम है। यहाँ यह कहना भी ज़रूरी है कि यह अन्न गुणवत्ता की दृष्टि से घटिया किस्म का होता है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ वास्तव में ज़रूरतमन्द लोगों को मिल सके, इसके लिए भारत सरकार द्वारा बेहतर लक्ष्य के साथ खाद्यान्न उपलब्ध कराने के दृष्टिगत एक जून, 1997 से लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीऐस) को आरम्भ किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य ग़रीबी-रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली से ज़्यादा रियायती कीमतों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना है। केन्द्र और विभिन्न राज्यों की सरकारें साझा तौर पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली और लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली को विनियमित करने की ज़िम्मेदारी वहन करती हैं। केन्द्रीय सरकार ख़रीद, भण्डारण, परिवहन और अन्न के थोक आवण्टन का जबकि राज्य सरकारें उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से इसके वितरण का काम करती हैं। राज्य सरकारें इसके अतिरिक्त ग़रीबी रेखा से नीचे के परिवारों की पहचान करने, राशन कार्ड जारी करने और पर्यवेक्षण के अतिरिक्त उचित मूल्य की दुकानों (ऐफ़पीऐस) के कामकाज का परिचालन व निगरानी भी करती हैं।
वर्तमान समय में देश भर में ग़रीब लोगों को सरकारों द्वारा खाद्यान्न का वितरण पाँच लाख उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से किया जा रहा है। यह विश्व का सबसे बड़ा वितरण-तन्त्र है। इसके बावजूद देश के इक्कीस प्रतिशत लोग कुपोषित हैं। इससे यह बात भलीभान्ति समझी जा सकती है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली और लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत वितरित किया जा रहा अन्न सभी ज़रूरतमन्द लोगों तक नहीं पहुँच रहा है।
वर्तमान समय में निश्चित ही खाद्यान्न वितरण प्रणाली बाधित हुई है, लोगों का रोज़गार छिन्न गया है और रोज़गार के अवसरों में भारी कमी आई है जिससे आजीविका बुरी तरह प्रभावित हुई है, लेकिन भुखमरी का सन्दर्भ इतना ही नहीं है बल्कि इसके पहले से विद्यमान कई कारण और पहलू हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था एक गहरे संकट में है। यह संकट इतना गहरा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था उत्क्रम प्रव्रजन (रिवर्स माइग्रेशन) का सामना कर रही है। इसका सीधा प्रभाव रोज़गार पर पड़ा है और भविष्य में भी पड़ेगा। सैण्टर फ़ॉर मॉनिटरिंग इण्डियन इकॉनोमी (सीऐमआईई) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार वर्तमान समय में लगभग बारह करोड़ नौकरियां चली गई हैं। वर्तमान परिस्थितियों से पहले भारत में कुल रोज़गार में लगी जनसंख्या चालीस करोड़ चालीस लाख थी जो वर्तमान समय में घटकर अट्ठाईस करोड़ पचास लाख रह गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो स्थिति और भी ज़्यादा बिगड़ने का अन्देशा जताया है। इस तरह अर्थव्यवस्था में माँग एवं आपूर्ति आधारित सुस्ती के साथ-साथ बेरोज़गारी का भीषण संकट भी सामने है। यह संकट सीधे भुखमरी की सम्भावित स्थिति से जुड़ा है।
भारत में वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली और लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुदृढ़ और सुप्रवाही बनाकर पहाड़ी, सुदुरवर्ती और दुर्गम क्षेत्रों तक इसकी पहुँच सुनिश्चित करनी होगी। जनसंख्या के निर्धनतम लोगों पर केन्द्रित लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली को इस वर्ग के प्रति और ज़्यादा सशक्त और सुदृढ़ बनाकर प्रभावी रूप से लागू करना होगा। लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत खाद्यान्न की आपूर्ति और उचित मूल्य की दुकानों के स्तर पर इनके पारदर्शी और जवाबदेय वितरण के क्रियान्वयन की व्यवस्था की जानी चाहिए। लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत अन्त्योदय अन्न योजना को ग़रीबी रेखा से नीचे की जनसंख्या के निर्धनतम वर्ग के बीच भुखमरी को कम करने के उद्देश्य से आरम्भ किया गया था। राष्‍ट्रीय नमूना सर्वेक्षण ने उस समय इस तथ्‍य को उजागर किया था कि देश की कुल जनसंख्या के लगभग पाँच प्रतिशत भाग के पास दो समय का भी भोजन नहीं है। वर्तमान समय में इस संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली को आबादी के इस वर्ग के प्रति और ज़्यादा प्रभावी बनाना होगा। लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत खाद्यान्न जारी करने की मात्रा को बढ़ाए जाने की भी ज़रूरत है।
सरकार को ग्रामीण व शहरी, दोनों क्षेत्रों के भूमिहीन खेतिहर मज़दूरों, सीमान्त किसानों, दस्तकारों एवं कुम्हार, बढ़ई, बुनकर, लोहार, मोची, रिक्शा चलाने वालों, ठेला चलाने वालों, सामान ढोने वालों, फल व फूल विक्रेताओं एवं कबाड़ियों और अनौपचारिक क्षेत्र में दिहाड़ी पर अपनी जीविका चलाने वालों पर विशेष रूप से ध्यान देना होगा। ऐसे परिवारों पर भी ध्यान देना होगा जिन्हें किसी विधवा, असाध्य रोग से ग्रस्त व्‍यक्‍ति, अपंग व्‍यक्‍ति या 60 वर्ष या इससे ज़्यादा उम्र के व्‍यक्‍ति या अकेली महिला या पुरुष जिनकी जीविका का कोई निश्चित साधन नहीं है या जिन्हें पारिवारिक अथवा सामाजिक सहायता प्राप्त नहीं है, द्वारा चलाया जा रहा हो। ऐसे कुछ उपाय कर, भारत में निश्चित ही भुखमरी के प्रभाव को कम किया जा सकता है। ऐसे सतत प्रयास देश से भुखमरी का समूल नाश करने में भी कारगर होंगे।

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