सामाजिक विसंगतियों के विरुद्ध एक सशक्त दस्तावेज़ ‘शिवरात्रि’

अत्याचार, निराशा, शक्ति-संघर्ष और हिंसा के बीच उम्मीद की एक किरण जगाती है यह फ़िल्म

संजय ठाकुर
बैक बैन्चर्स फ़िल्म्स द्वारा निर्मित बंगाली भाषा में बनी फ़िल्म शिवरात्रि उत्पीड़न, शोषण, सामाजिक असमानता और अन्याय जैसी सामाजिक विसंगतियों के विरुद्ध एक सशक्त दस्तावेज़ है। यह फ़िल्म नैतिक और आदर्श रूप से वंचित एक ऐसे समाज का चित्रण है जिसमें मानवता, प्रेम और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की अवहेलना होती है। इस फ़िल्म में ऐसे कारणों पर प्रकाश डालने की कोशिश की गई है कि एक कलाकार किन परिस्थितियों में अपनी संवेदनशीलता और मासूमियत त्यागकर एक अलगाववादी व विद्रोही हो जाता है और हाथ में हथियार और गोला-बारूद उठा लेता है। क्या इसके पीछे शक्ति का संघर्ष और भौतिकवादी सभ्यता में उत्पीड़न और शोषण जैसे कारक हैं? अत्याचार, निराशा, शक्ति-संघर्ष और हिंसा के बीच यह फ़िल्म उम्मीद की एक किरण जगाती है।


फ़िल्म की कहानी झारखण्ड के पुरुलिया में पर्वतों के आँचल में बसे काल्पनिक शान्त क्षेत्र शैतानपुर के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक के बाद एक हत्या से मौत की घाटी में परिवर्तित हो जाता है। यहाँ प्रत्येक हत्या के बाद लाल स्याही से लिखे एक पोस्टर ने स्थानीय निवासियों को कई तरह की आशंकाओं से भर दिया है जिसमें लिखा है, ‘मैं एक लड़ाई लड़ रहा हूँ। मैं आपका समर्थन नहीं माँग रहा हूँ। मैं सिर्फ़ इतना कह रहा हूँ कि सोचिए एक आदमी को लड़ाई की ज़रूरत क्यों पड़ती है!’ कहानी हत्या की ऐसी ही एक घटना से आरम्भ होती है। किसी व्यक्ति को गोली मार दी गई है। रेलवे ट्रैक के पास एक लावारिस शव पड़ा है और पास ही एक पोस्टर में लिखे हैं वही शब्द। इसी के साथ एक भय सीतापुर को घेर लेता है। पुलिस हत्या की जाँच में जुट जाती है।


अभी तो पहली ही हत्या की गुत्थी सुलझी नहीं होती है कि हत्याओं का एक सिलसिला-सा ही चल पड़ता है। हर हत्या का एक ही तरीका और एक ही तरह के शब्दों में लिखा एक ही तरह का पोस्टर। पुलिस छानबीन चलती रही और स्थिति ज़्यादा ख़राब होती रही। फिर जाँच की ज़िम्मेदारी भारतीय पुलिस सेवा के एक अधिकारी सत्येन को दी जाती है जो अपने एक वरिष्ठ अधिकारी रामगोपाल बाबू के साथ स्थिति का जायज़ा लेने के लिए शैतानपुर पहुँचते हैं। हालांकि सत्येन एक सक्षम अधिकारी है, लेकिन वह एक निर्दय व्यक्ति है। उसने क़ानून को अपने हाथ में लेकर फ़र्ज़ी मुठभेड़ों और हिरासत में सन्दिग्धों को मारना आरम्भ कर दिया। उसे सन्देह है कि इन हत्याओं के पीछे एक अलगाववादी समूह का हाथ है। इस तरह हर गुज़रते दिन के साथ शैतानपुर युद्ध, आतंक और मौत की प्रत्याशा से भरता गया।
इन क्रमिक हत्याओं की जाँच के दौरान सत्येन की मुलाकात एक अधेड़ व्यक्ति मधुबन से होती है। मधुबन सुरम्य पहाड़ी के नीचे की तरफ़ हरियाली के बीच एक विचित्र घर में रहता है। घर के बाहर सत्येन ने शिव-पार्वती का एक भित्ति-चित्र देखा। जब मधुबन से पूछताछ की जाती है तो वह कहता है कि वह एक कलाकार है और ‘केऊ न’ नाम से एक रंगशाला और छऊ लोक नृत्य से सम्बन्धित कलाकारों का एक समूह चलाता है। वह यह भी कहता है कि स्थानीय लोग उसे प्यार से ‘मधु’ कहते हैं। वह अक्सर प्रदर्शन के लिए अपनी मण्डली के साथ झारसुगुड़ा या राउरकेला जैसी जगहों पर जाता है। मधुबन के समूह का अजीब नाम ‘केऊ न’ सत्येन को किसी चेतावनी का अहसास करवाता है।


सत्येन की पत्नी अंजलि नारीत्व के आकर्षण और सौम्यता से सम्पन्न है। वह एक चित्रकार व शिक्षिका है और विवाह के बाद सत्येन के साथ शैतानपुर आ जाती है। अपने पति के विपरीत अंजलि शान्त, संयमी, संवेदनशील और एक बेहतर दुनिया के सपने देखने वाली है। उसे देबाशीष बंदोपाध्याय और भास्कर चक्रवर्ती की कविताएं पढ़ना बहुत पसन्द है। उसका मन उसके वैवाहिक जीवन की बाधाओं से निरुद्ध नहीं है जिस कारण वह हर रात सत्येन के यौन-दुर्व्यवहार के बाद भी शिव का मुखौटा पहने अपने प्रेम-पुरुष का सपना देखती है। उसे चित्रकारी पसन्द है और वह बार-बार अर्द्धनारीश्वर को चित्रित करने की नाकाम कोशिश करती है और पार्वती को ही चित्रित कर पाती है। उसे लगता है कि उसके जीवन में शिव का अस्तित्व ही नहीं रह गया है।
शैतानपुर पहुँचने के बाद अंजलि की मुलाकात सपनों से भरे एक जवान लड़के से होती है जिससे उसे मधुबन का पता चलता है। वह मधुबन की छोड़ी गई डायरियों का पता लगाती है और उसको लेकर कई तरह के सवालों से घिर जाती है। मधुबन कौन है, क्या वह अपने आदर्श चे ग्वेरा की तरह क्रान्तिकारी है, क्या वह वामपन्थी गुरिल्ला समूह का सदस्य है, या वह सिर्फ़ एक कलाकार है? ऐसे कई सवाल उसके दिमाग़ में घूमते हैं।
क्या अंजलि मधुबन से मिल पाएगी, क्या उसका कोई गुप्त प्रेमी है, शैतानपुर में अब कौन आएगा; जैसा कि ख़ुफ़िया विभाग का कहना है कि श्रावण मेला के अन्त में शैतानपुर में एक शीर्ष अलगाववादी नेता आता है, क्या शिवरात्रि वास्तव में जीवन और समाज के अन्धकार व अज्ञानता के विस्मरण को चिह्नित करेगी जैसे कई सवाल हैं जिनके इर्द-गिर्द शिवरात्रि फ़िल्म घूमती है। प्यार, वासना, विद्रोह और इन्तकाम से भरे सामाजिक-राजनीतिक ड्रामा शिवरात्रि में इन सब सवालों के जवाब हैं।
यह फ़िल्म बंगाली लेखक देबाशीष बन्दोपाध्याय द्वारा लिखित उपन्यास ‘शिवरात्रि’ पर आधारित है जिसकी पटकथा और संवाद राजादित्य द्वारा लिखे गए हैं। फ़िल्म में नायक के किरदार में राजादित्य बनर्जी हैं जिन्होंने इस फ़िल्म का निर्देशन भी किया है। राजदित्य ने यूरोप और संयुक्त राज्य अमरीका में भी कई नाटकों में अभिनय किया है। इस फ़िल्म की नायिका टैलीविजन धारावाहिकों फगुन बू और अण्डरमल में अभिनय कर चुकीं सुमन बनर्जी हैं। फ़िल्म में पार्थसारथी कुमार, बिप्लब दत्ता, बाल कलाकार व नर्तक आर्यन दत्ता का भी महत्वपूर्ण किरदार है।

You might also like

Leave A Reply

Your email address will not be published.