बेघर लोगों के लिए आश्रय

दुनिया के ज़्यादातर देशों में विकास और आर्थिक समृद्धि की रूपरेखा इस तरह तैयार की जा रही है कि समाज का एक बड़ा तबका अलग-थलग पड़कर घोर आर्थिक विषमता का शिकार हो रहा है। कहीं-कहीं तो इस विकास की मीनार ऐसे उपेक्षित समाज की पीठ पर ही खड़ी की जा रही है जिससे इनका घर तो उजड़ ही रहा है, इनकी ज़िन्दगी की गुज़र-बसर पर भी एक सवालिया निशान लग रहा है। इस तरह सामाजिक असमानता की खाई के लगातार बढ़ने से दुनिया की एक बड़ी आबादी बग़ैर छत के रहने को मजबूर है।

संजय ठाकुर
एक अदद छत से महरूम दुनिया के दस करोड़ से ज़्यादा बेघर लोगों के लिए आश्रय जुटाना मौजूदा वक़्त की एक बड़ी चुनौती है। संयुक्त राष्ट्र ने भी कहा है कि दुनिया में बेघर लोगों की तादाद रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच रही है। इस पर यह बात और भी चिन्ताजनक है कि यह तादाद लगातार बढ़ रही है क्योंकि दुनिया के कई देशों में लोगों के बेघर होने का यह संकट लगातार जारी है। दुनिया के ज़्यादातर देशों में विकास और आर्थिक समृद्धि की रूपरेखा इस तरह तैयार की जा रही है कि समाज का एक बड़ा तबका अलग-थलग पड़कर घोर आर्थिक विषमता का शिकार हो रहा है। कहीं-कहीं तो इस विकास की मीनार ऐसे उपेक्षित समाज की पीठ पर ही खड़ी की जा रही है जिससे इनका घर तो उजड़ ही रहा है, इनकी ज़िन्दगी की गुज़र-बसर पर भी एक सवालिया निशान लग रहा है। इस तरह सामाजिक असमानता की खाई के लगातार बढ़ने से दुनिया की एक बड़ी आबादी बग़ैर छत के रहने को मजबूर है। ऐसा नहीं है कि दुनिया के आर्थिक रूप से पिछड़े देश ही लोगों के बेघर होने की स्थिति का सामना कर रहे हैं बल्कि अमरीका जैसे अमीर देश भी इस संकट का सामना कर रहे हैं। आर्थिक रूप से सम्पन्न दुनिया के इस विकसित देश में भी बहुत-से लोग सड़कों पर रहने के लिए मजबूर हैं। हालाँकि दुनिया के विभिन्न देशों में इस स्थिति पर क़ाबू पाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन फिलहाल तो यह स्थिति बदतर ही हो रही है। इस तरह दुनिया के विभिन्न देशों में लोगों के यथेष्ट आश्रय के बुनियादी अधिकार का बड़े पैमाने पर उल्लंघन हो रहा है।
भारत भी दुनिया के उन देशों की फ़ेहरिस्त में है जहाँ बेघर लोगों की बढ़ती तादाद एक चुनौती बनती जा रही है। ताज्जुब तो इस बात का है कि देश में बेघर लोगों की बढ़ती तादाद से देश की केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें वाकिफ़ हैं, लेकिन उनमें इस समस्या से निपटने को लेकर संजीदगी नहीं है। बेघर आबादी के लिए आश्रय के इन्तज़ामों से जुड़ी एक रिपोर्ट में केन्द्र सरकार बेघर लोगों की समस्या और उन्हें आश्रय उपलब्ध करवाने में अक्षमता की बात मान चुकी है। सरकार ने राज्यसभा में स्वीकार किया है कि बेघर लोगों की तादाद और मौजूदा आश्रय-स्थलों की क्षमता में बहुत अन्तर है। देश के आवास एवं शहरी मामलों के मन्त्रालय द्वारा पेश किए गए आँकड़ों से यह बात ज़ाहिर हुई है कि बेघर लोगों की तादाद और इनके लिए आश्रय की उपलब्धता के बीच का फ़ासला बड़ा है। सरकार द्वारा बेघर लोगों को आश्रय उपलब्ध करवाने की धीमी गति से यह मामला और भी ज़्यादा बिगड़ रहा है। इस पर और भी ज़्यादा चिन्ता का विषय यह है कि आबादी बढ़ने के साथ-साथ यहाँ बेघर लोगों की तादाद भी तेज़ी से बढ़ रही है। सरकार द्वारा बार-बार बेघर लोगों और आश्रय-स्थलों के बीच के अन्तर को कम करने के लिए कोशिशें तेज़ करने की बात कही जाती है, लेकिन अन्तर कम होने की बजाय बढ़ ही रहा है। इससे बेघर लोगों की बढ़ती तादाद और इनके लिए आश्रय के इन्तज़ाम करवाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।
केन्द्र सरकार ने बेघर लोगों को आश्रय उपलब्ध करवाने की धीमी गति के लिए राज्य सरकारों को ज़िम्मेदार ठहराया है। केन्द्र सरकार का कहना है कि राज्य सरकारें इस मामले में उदासीन हैं और यह बेघर लोगों की बढ़ती तादाद का एक बड़ा कारण है। केन्द्र सरकार का यह कहना अपनी कमियों और लापरवाहियों को छुपाने या स्वीकार न करने से ज़्यादा कुछ भी नहीं है। देश में बड़े पैमाने पर बेघर लोगों की तादाद का सवाल सीधे केन्द्र सरकार से जुड़ा है जिसके लिए केन्द्र सरकार पूरी तरह जवाबदेय है। सरकार द्वारा कई अवसरों पर बेघर लोगों के लिए किए जा रहे इन्तज़ामों के सम्बन्ध में जो स्पष्टीकरण दिया गया है वह कोरी बयानबाज़ी से ज़्यादा कुछ भी नहीं है। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस समस्या पर चिन्ता जताई है और केन्द्र सरकार को इस सम्बन्ध में एक समिति गठित करने का आदेश दिया है। इस आदेश पर जिस समिति का गठन किया गया है उसने भी अपनी रिपोर्ट में सरकार की कोशिशों को नाकाफ़ी कहा है।
हालाँकि सरकार ने बेघर लोगों को आश्रय उपलब्ध करवाने पर केन्द्रित कई कार्यक्रम चला रखे हैं, लेकिन ये ज़्यादातर सरकारी दस्तावेज़ों तक ही महदूद रह जाते हैं जिससे ये कम ही व्यावहारिकता का रूप ले पाते हैं। राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन और दीन दयाल अन्त्योदय योजना जैसे सरकारी कार्यक्रम इसकी जीती-जागती मिसाल हैं। इन कार्यक्रमों के नाम पर बार-बार धनराशि तो जारी कर दी जाती है, लेकिन कोई सही नतीजा सामने नहीं आता। यह किसी एक राज्य की बात नहीं है बल्कि ज़्यादातर राज्यों की स्थिति थोड़े-बहुत अन्तर के साथ लगभग एक-सी है। बेघर लोगों को आश्रय उपलब्ध करवाने में अगर उत्तर प्रदेश एवं बिहार जैसे राज्यों को फ़िसड्डी और तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, दिल्ली एवं मिज़ोरम के प्रदर्शन को बेहतर कहा जाता है तो इसका यह मतलब कतई नहीं है कि इन राज्यों में बेघर लोगों की स्थिति में कोई बहुत बड़ा अन्तर है बल्कि समस्या का स्वरूप और आकार लगभग एक जैसा है। विभिन्न राज्यों में आश्रय उपलब्ध करवाने में धीमी प्रगति के लिए विभिन्न राज्यों के स्थानीय प्रशासन में इच्छा-शक्ति का अभाव, स्थानीय निकायों एवं अन्य सम्बद्ध अभिकरणों के बीच सही तालमेल की कमी, केन्द्र सरकार द्वारा दी गई धनराशि का सही उपयोग न होना, बेघर लोगों की सही तादाद का पता न होना, आश्रय-स्थलों के निर्माण के लिए जगह का न होना, ज़मीन की कीमत का ज़्यादा होना, आश्रयों का ग़लत प्रबन्धन जैसे कई कारण हैं।
बेघर लोगों का संकट छोटा नहीं है। एक तरफ़ तो ये लोग भूख और ग़रीबी से जूझ रहे हैं, तो दूसरी तरफ़ एक अदद छत न होने से ठण्ड व गर्मी जैसी स्थितियों में तड़पने को मजबूर हैं। लोगों के बेघर होने की स्थिति तब ज़्यादा विकट हो जाती है जब दिशाहीन विकास की एक-तरफ़ा इबारत तैयार करके व्यावहारिक पक्ष को पूरी तरह नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है। ऐसा भारत समेत अमरीका जैसे विकसित देशों में भी हो रहा है। उदाहरण के तौर पर अमरीका के पश्चिमोत्तर शहर पोर्टलैण्ड को लेते हैं। अच्छी जलवायु, सुहावने मौसम और समृद्ध संस्कृति वाले इस शहर को नई सोच का केन्द्र भी माना जाता है। गुलाबों के इस शहर को सिलिकन वैली की तर्ज़ पर सिलिकन फ़ॉरैस्ट भी कहा जाता है। इस शहर में भी विकास की दास्तान कुछ ऐसे रची गई कि यहाँ बड़ी-बड़ी कम्पनियों का आना हुआ। इनसे लोगों को अच्छी नौकरियों की उम्मीदें थीं, लेकिन वास्तविक स्थिति बिल्कुल उलट निकली। ऐसा ही अमरीका के दूसरे शहरों लॉस एंजिलिस, न्यूयॉर्क और सैनफ़्राँसिस्को के साथ भी हुआ। अब तो स्थिति यह है कि पोर्टलैण्ड समेत अन्य अमरीकी शहरों में बेघर लोगों से जुड़ा संकट बढ़ता जा रहा है। यहाँ अर्थव्यवस्था तो मज़बूत हुई है, लेकिन इसका लाभ कुछ ही लोगों को मिलने से आर्थिक असमानता भी बढ़ी है। सरकार द्वारा नीति-निर्माण के स्तर की कमी, सरकारी योजनाओं के कठोर होने, बढ़ती महंगाई और बेरोज़गारी से यह मसला और भी बड़ा हो जाता है।
बेघर लोगों को आश्रय उपलब्ध करवाने के लिए दुनिया के विभिन्न देशों में प्राथमिकता के आधार पर काम किए जाने की ज़रूरत है। भारत में बेघर लोगों को आश्रय उपलब्ध करवाने के लिए केन्द्र सरकार के स्तर पर कोशिशें यथार्थ में तेज़ की जानी चाहिए। इस दिशा में केन्द्र सरकार द्वारा विभिन्न राज्य सरकारों से लगातार सम्पर्क बनाए रखकर प्रगति का जायज़ा लिया जाना चाहिए। पहले तो बेघर लोगों की असल तादाद को जानने के लिए ग़ैर-सरकारी स्तर पर एक विस्तृत सर्वेक्षण करवाया जाना चाहिए। इसके बाद बेघर लोगों के लिए आश्रय उपलब्ध करवाने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। जब तक यथेष्ट तादाद में आश्रय-स्थलों का निर्माण नहीं होता तब तक बेघर लोगों के लिए किराये के मकानों का बन्दोबस्त किया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र ने सभी को यथेष्ट आश्रय के बुनियादी अधिकार को रेखाँकित करते हुए बेघर लोगों को आश्रय उपलब्ध करवाने के लिए संयुक्त राष्ट्र हैबिटैट की वर्ल्ड सिटी रिपोर्ट में दुनिया के विभिन्न देशों को सुझाव दिए थे। इन सुझावों पर अमल करते हुए भारत में बेघर लोगों की बढ़ती तादाद से निपटने के लिए राष्ट्रीय शहरी नीति बनाई गई थी। इसका प्रारूप तैयार करने के लिए एक समिति का गठन भी किया गया था। इस समिति द्वारा किए जा रहे काम की प्रगति को उजागर किया जाना चाहिए।
मौजूदा वक़्त में दुनिया की आबादी आठ अरब से थोड़ी ही कम है। इस आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा अभी भी बुनियादी ज़रूरतों से महरूम है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया में एक अरब से ज़्यादा लोग तो ऐसे हैं जिन्हें पीने का साफ़ पानी तक उपलब्ध नहीं है जिस कारण प्रदूषित पानी पीने से एक साल में लाखों लोगों की मौत हो जाती है। ऐसे में बेघर लोगों को आश्रय उपलब्ध करवाना कितनी बड़ी चुनौती है, यह बात अच्छी तरह समझी जा सकती है।

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