खुरदरे पैर

बैद्यनाथ मिश्र यात्री नागार्जुन

खुब गए
दूधिया निगाहों में
फटी बिवाइयोंवाले खुरदरे पैर।
धंस गए
कुसुम-कोमल मन में
गुट्ठल घट्ठों वाले कुलिश-कठोर पैर
दे रहे थे गति
रबड़-विहीन ठूंठ पैडलों को
चला रहे थे
एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन चक्र
कर रहे थे मात त्रिविक्रम वामन के पुराने पैरों को
नाप रहे थे धरती का अनहद फ़ासला
घण्टों के हिसाब से ढोए जा रहे थे।
देर तक टकराए
उस दिन इन आँखों से वे पैर
भूल नहीं पाऊंगा फटी बिवाइयां
खुब गईं दूधिया निगाहों में
धंस गईं कुसुम-कोमल मन में।

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