दुर्व्यवस्था पर प्रहार है फ़िल्म डैथ सर्टिफ़िकेट

संजय ठाकुर
पूर्वी भारत के एक छोटे से रेलवे स्टेशन में कार्यरत एक जल परिसेवक (वॉटर सर्वर) एक शाम घर नहीं लौटता तो उसकी पत्नी कई तरह की आशंकाओं से घिर जाती है। वह कहाँ है? क्या वह उसे ढूंढ पाएगी? ऐसे कई सवाल उसके ज़ेहन में घूमने लगते हैं। वह उसे ढूंढने के लिए निकल पड़ती है। पहाड़ों और जंगलों से घिरे हुए अपने ख़ूबसूरत गाँव से दूर उसे खोजते हुए उसकी पत्नी को अमानवीय वास्तविकता के साथ दो-चार होना पड़ता है। जब वह और उसके साथी रेलवे स्टेशन पर पहुँचते हैं तो उन्हें सुनने को मिलता है कि किसी को रेलगाड़ी ने कुचल दिया है। इसके बाद शुरु होती है उस महिला के अपने पति का डैथ सर्टिफ़िकेट प्राप्त करने की जंग।
राजदित्य बनर्जी और बैक बैंचर्स फ़िल्म्स के बैनर तले बनी फ़िल्म डैथ सर्टिफ़िकेट में भारत में वर्षों की दासता के शिकार मूक और हाशिए पर रहने वाले लोगों, विशेष रूप से महिलाओं पर पड़े प्रभाव, जो एक बड़े पैमाने पर उनके नियन्त्रण से बाहर की घटनाओं में प्रतिबिम्बित होता है, को उजागर करने का प्रयास किया गया है। एक आदिवासी महिला को जब पता चलता है कि उसका पति ग़ायब है तो उसकी दुनिया ही उजड़कर रह जाती है। अपने लापता पति को खोजने की कोशिश कर रही उस महिला का क्रूर और अमानवीय ज़मीनी हक़ीक़त से वास्ता पड़ता है।
यह फ़िल्म भारत के क्षेत्र-विशेष में फैले भ्रष्टाचार, नौकरशाही और देश के दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से जुड़े मानवाधिकार-उल्लंघन पर भी एक कुठाराघात है। इस फ़िल्म में बड़ी सरलता के साथ इन लोगों के कटु अनुभवों और दर्द को दर्शाने का प्रयास किया गया है। यह फ़िल्म यह तीखा व्यंग्य भी कसती है कि कहाँ तो अन्य ग्रहों पर जीवन की सम्भावनाएं तलाश की जा रही हैं, और कहाँ धरती पर आदमी अकेला होता जा रहा है! एक बहुत बड़ी आबादी अभी भी घोर मानवाधिकार-उल्लंघन की शिकार है। वैश्वीकरण के इस दौर में लगातार गिरते जीवन-मूल्यों के प्रति भी यह फ़िल्म गहरी चिन्ता जताती है।
कुरमाली बोली में बनाई गई इस फ़िल्म को पूर्वी भारत में वास्तविक स्थानों पर प्राकृतिक रौशनी में फ़िल्माया गया है। कुरमाली, या कुडामाली बंगाल की कई बोलियों में से एक है जो विशेष रूप से झारखण्ड में बोली जाती है। कुरमाली शब्द झारखण्ड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के कुडूम महतो समुदाय से जुड़ा है। कुरमाली झारखण्ड की एक प्रमुख भाषा है। वास्तव में यह एक अन्तर-प्रान्तीय भाषा है जिसके विस्तार-क्षेत्र का पता ‘उडीश्य शिखर, नागपुर, आधा-आधी खड़गपुर’ से चलता है। कुरमाली बोली उड़ीसा में क्योंझर, बोनई, बामडा, म्यूरगंज, सुन्दरगढ़; पश्चिम बंगाल के अन्तर्गत पुरुलिया, मिदनापुर, बंकुरा, मालदा, दिनाजपुर के सीमावर्ती क्षेत्रों, जो बिहार से सटे हैं; छोटानागपुर के राँची, हज़ारीबाग़, गिरिडीह, धनबाद, सिंहभूम और बिहार के भागलपुर क्षेत्र व सन्थाल परगने में भी बोली जाती है। यह बोली केवल कुर्मियों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इनके साथ रहने वाले अन्य जातियों के लोगों के भाव-विनियम का भी साधन है। यह साधारणतया देवनागरी लिपि में लिखी जाती है, लेकिन इसका साहित्य बंगाली और उड़िया में भी उपलब्ध है।
फ़िल्म डैथ सर्टिफ़िकेट को अब तक बीऐमओ इण्टरनैशनल फ़िल्म फ़ैस्टिवल, टोरण्टो-कनाडा 2018; मैलबॉर्न इण्डियन फ़िल्म फ़ैस्टिवल 2017, थर्ड आई एशियन फ़िल्म फ़ैस्टिवल, मुम्बई 2017; लंदन फ़िल्म फ़ैस्ट, यूनाइटेड किंगडम 2017; लॉस एंजेलेस सिने फ़िल्म फ़ैस्ट, यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका 2017; दसवें बैंगलोर इण्टरनैशनल फ़िल्म फ़ैस्ट 2018; पाँचवें एशियन फ़िल्म फ़ैस्ट, पुणे 2018; गरीफ़ुन इण्टरनैशनल फ़िल्म फ़ैस्ट, यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका 2018 और सैन मैरो फ़िल्म फ़ैस्ट, इटली 2018 में प्रदर्शित किया जा चुका है।
फ़िल्म डैथ सर्टिफ़िकेट में दीपमाला सेनगुप्त, प्रदीप भट्टाचार्य, राजदित्य बनर्जी और भूपेन पाण्डेय मुख्य भूमिकाओं में हैं। फ़िनलैण्ड में रह रहे राजदित्य का जन्म भारत में हुआ है। मूल रूप से वो एक थियेटर कलाकार हैं जिन्होंने फ़िल्म-निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा है। उन्होंने फ़िनलैण्ड और अमरीका में थिएटर में काम करने के साथ-साथ कई नाटकों के लेखन और निर्देशन के अतिरिक्त तीन लघु फिल्मों में अभिनय भी किया है। डैथ सर्टिफ़िकेट उनकी पहली प्रयोगधर्मी फ़ीचर फ़िल्म है।
फ़िल्म डैथ सर्टिफ़िकेट को कनाडा में आयोजित उत्तरी अमरीका के सबसे बड़े सॉउथ एशियन फ़िल्म फ़ैस्टिवल बीऐमओ इफ़सा फ़िल्म फ़ैस्टिवल में प्रदर्शन के लिए चयनित किया गया है। इसका प्रदर्शन 20 मई, 2018 को शाम चार बजे किया जाएगा। कनाडा में इस फ़िल्म का प्रचार कनाडा स्थित फ़िल्म-निर्माताओं अनुराधा चटर्जी, अंजू मल्होत्रा और कामिनी सिंह द्वारा किया जा रहा है।

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