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कविताएं

तुम आईं

केदारनाथ सिंह तुम आईं जैसे छीमियों में धीरे- धीरे आता है रस जैसे चलते-चलते एड़ी में काँटा जाए धंस तुम दिखीं जैसे कोई बच्चा सुन रहा हो कहानी तुम हंसीं जैसे तट पर बजता हो पानी तुम हिलीं जैसे हिलती है पत्ती जैसे लालटेन के शीशे में काँपती हो…

खुरदरे पैर

बैद्यनाथ मिश्र यात्री नागार्जुन खुब गए दूधिया निगाहों में फटी बिवाइयोंवाले खुरदरे पैर। धंस गए कुसुम-कोमल मन में गुट्ठल घट्ठों वाले कुलिश-कठोर पैर दे रहे थे गति रबड़-विहीन ठूंठ पैडलों को चला रहे थे एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन चक्र कर रहे थे…

हंसती रहने देना

सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय जब आवे दिन तब देह बुझे या टूटे इन आँखों को हँसती रहने देना! हाथों ने बहुत अनर्थ किए पग ठौर-कुठौर चले मन के आगे भी खोटे लक्ष्य रहे वाणी ने (जाने अनजाने) सौ झूठ कहे पर आँखों ने हार, दुःख, अवसान, मृत्यु…

जो न बन पाई तुम्हारे

माखनलाल चतुर्वेदी जो न बन पाई तुम्हारे गीत की कोमल कड़ी तो मधुर मधुमास का वरदान क्या है तो अमर अस्तित्व का अभिमान क्या है तो प्रणय में प्रार्थना का मोह क्यों है तो प्रलय में पतन से विद्रोह क्यों है आए या जाए कहीं असहाय दर्शन की घड़ी जो न…

गेहूं का दाना

कुमार कृष्ण मिट्टी में दबी मनुष्य की भूख जितनी बार होती है गर्म आग पर उतनी ही बार बदलती है अपना रंग, अपना रूप पिस-पिस कर, जल-जल कर भूख में कराहती आवाज़ का नाम है गेहूं का दाना वह न हंसना जनता है न रोना पक्षी की चोंच में उड़ता जीवन है गेहूं…