अशुभ योग में भी छुपी है बड़ी शुभता

संजय ठाकुर
ज्योतिष शास्त्र में वर्णित प्रत्येक योग की अपनी महत्वपूर्णता है। वास्तव में किसी भी योग को छोटा या बड़ा आँकने का न तो कोई पैमाना है और न ही इसका कोई महत्व है। किसी भी व्यक्ति के लिए वही योग बड़ा है जिसका उसके जीवन में प्रभाव है। वह योग शुभ भी हो सकता है और अशुभ भी। सामान्य रूप से शुभ योग को बड़ा योग कह लिया जाता है जिसका कोई तर्कसंगत आधार नहीं हैं। जन्म लग्न की विशेष परिस्थितियों में ये योग भी निष्फल हो सकते हैं। ऐसे में व्यक्ति-विशेष के लिए इनका कोई विशेष महत्व नहीं रहता। ऐसे योग सामान्य रूप से राजयोग श्रेणी के योग हैं। अषुभ योग का भी व्यक्ति-विशेष के जीवन में बड़ा महत्व हो सकता है। व्यावहारिकता में देखा गया है कि सामान्य रूप से अशुभ समझे जाने वाले योग का व्यक्ति-विशेष के जीवन-निर्माण में विशेष योगदान होता है। ऐसा योगदान प्रत्यक्ष भी हो सकता है और परोक्ष भी। यह एक विडम्बना है कि अशुभ योग के ऐसे योगदान पर किसी भी का ध्यान नहीं जाता। अधिकतर तो भूलवश या ज्ञानाभाव में जन्म लग्न में घटित अशुभ योग के फल को उसी जन्म लग्न में घटित किसी शुभ योग का फल मान लिया जाता है। अशुभ योग का ऐसा फल प्रत्यक्ष फल होता है। यह तो अशुभ योग का एक रूप है किन्तु इसका दूसरा रूप भी है जो परोक्ष है और सबसे अधिक महत्वपूर्ण व विचारणीय है। वास्तव में कोई भी अशुभ योग व्यक्ति-विशेष के जीवन को वास्तविक पूर्णता की ओर ले जाता है। व्यक्ति के पूर्णता पाने की यह प्रक्रिया एक मंजन-क्रिया है। इसके कई रूप हो सकते हैं, कई प्रकार हो सकते हैं। पूर्णता तक जाने की यात्रा निश्चित ही कष्टप्रद व दुष्कर होती है किन्तु उस यात्रा का अन्त अवश्य ही सुखों व संतोष की अपार अनुभूति से परिपूर्ण है।
ऐसे बहुत-से अशुभ योग हैं जो व्यक्ति के जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। जन्म लग्न के शुभ स्थानों पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव भी अशुभ योग है। उदाहरण के रूप में जन्म लग्न का चौथा भाव माता, भूमि, भवन, गृह-सुख व मन का भाव है। इस भाव पर राहु या केतु ग्रह या अन्य किसी अशुभ योग से पड़ने वाला प्रभाव व्यक्ति-विशेष के माता, भूमि, भवन, गृह-सुख व मन से सम्बन्धित शुभ फलों को प्रभावित करता है। उदाहरण के रूप में चौथे भाव में राहु ग्रह की उपस्थिति व्यक्ति-विशेष को गृह-सुख से वंचित करती है। ऐसा व्यक्ति अशुभता के अधिक प्रभाव में जन्म स्थान से दूर भी जा सकता है। जन्म लग्न में इस सम्बन्ध में अन्य भी अशुभ स्थितियां हों तो ऐसा व्यक्ति निश्चित ही जन्म स्थान से दूर रहता है। ऐसे व्यक्ति का जीवन असामान्य होता है। उसे बहुत-से कष्टों का भी सामना करना पड़ सकता है। ऐसे अशुभ प्रभाव के रहते हुए भी यह बात स्पष्ट रूप से सामने आती है कि ऐसे व्यक्ति को जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की क्षमता प्राप्त हो जाती है। ऐसे में वह जीवन में उन्नति करते हुए बहुत-सी उपलब्धियां भी प्राप्त कर सकता है। यह बात व्यावहारिक रूप में परिलक्षित होती है कि जन्म स्थान से बहुत दूर गए लोगों ने जीवन में उपलब्धियां प्राप्त की हैं। ऐसे लोगों का जीवन कठिनाइयों से भरा पड़ा था किन्तु परिस्थितियों ने उन्हें कठिनाइयों से लड़ना भी सिखाया। ऐसे बहुत-से लोग हैं जिन्होंने दरिद्रता से अपनी यात्रा आरम्भ कर अकूत सम्पत्ति का स्वामित्व पाया।
इसी प्रकार जन्म लग्न के बारहवें भाव पर पड़ा अषुभ प्रभाव भी एक अशुभ स्थिति है। यह भाव मोक्ष व भ्रमण का भी भाव है। इस भाव पर पड़ा अशुभ प्रभाव व्यक्ति-विशेष को अधिकतर भटकाता रहता है किन्तु ऐसा व्यक्ति भटकते-भटकते सामान्यतया जीवन का सत्य पा जाता है। ऐसे अशुभ प्रभाव के होते हुए जन्म लग्न में सूर्य ग्रह की षुभ स्थिति व्यक्ति-विशेष को विशेष ख्याति भी दिलवाती है। बारहवें भाव में बने अशुभ योग के रहते जन्म लग्न में बृहस्पति ग्रह की शुभ स्थिति या बारहवें भाव पर बृहस्पति ग्रह के किसी भी रूप में पड़ने वाले प्रभाव से व्यक्ति-विशेष आध्यात्मिक ऊँचाइयां पाता है।
जन्म लग्न का नौवां भाव भाग्य व धर्म का भाव है। इस भाव पर किसी भी रूप में पड़ा अशुभ प्रभाव व्यक्ति-विशेष के जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करता है। उदाहरण के रूप में नौवें भाव में राहु ग्रह की उपस्थिति व्यक्ति-विशेष के जीवन को अनिश्चितताओं से भर देती है। ऐसे व्यक्ति का जीवन बहुत अधिक असामान्य हो जाता है। उसके जीवन में बहुत अधिक संघर्ष होता है। राहु ग्रह के ऐसे प्रभाव में शुभता यह है कि राहु ग्रह के ऐसे प्रभाव वाला व्यक्ति विलक्षण संघर्ष-क्षमता लिए होता है। ऐसा व्यक्ति अपने संघर्ष से भाग्य-दुर्भाग्य के अन्तर को ही मिटा देता है। ऐसे में यदि जन्म लग्न में सूर्य ग्रह शुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति भीड़ में भी अलग दिखाई देता है। ऐसी स्थिति में जन्म लग्न में बृहस्पति ग्रह के शुभ प्रभाव से व्यक्ति विलक्षण आध्यात्मिक विचारधारा का प्रतिपादन करता है।
जन्म लग्न के आठवें भाव पर किसी भी रूप में पड़ा अशुभ प्रभाव सामान्यतया आठवें भाव से सम्बन्धित शुभ फलों में कमी लाता है। सामान्य रूप से यह भाव आयु व रहस्य का भाव है। यह भाव शोध से भी सम्बन्धित है। सामान्य रूप से इस भाव पर राहु या केतु ग्रह का प्रभाव एक अत्यन्त ही अशुभ स्थिति है। इस भाव में राहु या केतु ग्रह की उपस्थिति दुर्घटनाओं व अकस्मात घटनाओं को इंगित करती है। आठवें भाव में राहु या केतु ग्रह की उपस्थिति से व्यक्ति-विशेष कभी भी दुर्घटनाग्रस्त हो सकता है या उसके जीवन में अचानक कोई भी घटना घट सकती है। ऐसे व्यक्ति को छोटी से छोटी या बड़ी से बड़ी किसी भी प्रकार की चोट लग सकती है। ऐसी परिस्थितियों में आठवें भाव में राहु या केतु ग्रह की उपस्थिति को सामान्य रूप से अशुभ कहा जाएगा। आठवें भाव में राहु या केतु ग्रह की उपस्थिति व्यक्ति-विशेष के रहस्यात्मक, वैज्ञानिक या आध्यात्मिक गुणों की भी परिचायक है। इस भाव में राहु ग्रह की उपस्थिति व्यक्ति-विशेष को रहस्यमयी बनाने के साथ-साथ उसमें वैज्ञानिक गुणों का भी संचार करती है। ऐसे में व्यक्ति रहस्यात्मकता के साथ-साथ विशेष वैज्ञानिक या शोध प्रतिभा लिए होता है। ऐसे राहु ग्रह पर शुभ ग्रह का प्रभाव निष्चित ही दैवीय साधना व शोध-कार्यों की ओर प्रेरित करता है किन्तु ऐसी दैवीय साधना उग्र प्रकार की दैवीय साधना होगी। आठवें भाव में केतु ग्रह की उपस्थिति व्यक्ति-विशेष की रहस्यात्मक प्रवृत्ति के साथ-साथ आध्यात्मिकता की द्योतक है। ऐसा व्यक्ति रहस्यमयी होने के साथ-साथ आध्यात्मिक गुण लिए हेाता है किन्तु ऐसी अवस्था में व्यक्ति के तंत्र-साधना करने या स्वार्थवश दैवीय अराधना करने की सम्भावनाएं अधिक होती हैं।
आठवें भाव पर सूर्य ग्रह का प्रभाव भी इस भाव से सम्बन्धित सामान्य शुभ फलों में कमी लाता है किन्तु इस भाव पर सूर्य ग्रह का प्रभाव आध्यात्मिकता व रहस्यात्मकता का परिचायक तो है ही साथ ही ऐसा व्यक्ति विशेष वैज्ञानिक प्रतिभा भी लिए होता है। आठवं भाव पर मंगल ग्रह का प्रभाव जहाँ इस भाव से सम्बन्धित अशुभता का द्योतक है वहीं इस भाव में मंगल ग्रह की उपस्थिति व्यक्ति-विशेष की वैवाहिक अषुभता को भी इंगित करती है किन्तु ऐसी अवस्था में व्यक्ति वैज्ञानकि गुण लिए हो सकता है। जन्म लग्न में सूर्य ग्रह शुभ स्थिति में हो तो ऐसा व्यक्ति निश्चित ही विशेष वैज्ञानिक प्रतिभा लिए होता है।
ऐसे विशेष योग भी हैं जिन्हें सामान्यतया अशुभ योगों की श्रेणी में रखा जाता है किन्तु अशुभता के रहते भी ये योग विशेष परिणाम देकर शुभ योगों से भी अधिक महत्व के हो जाते हैं। उदाहरणस्वरूप शनि व चन्द्र ग्रहों के योग से बना विश योग सामान्यतया एक अशुभ योग है किन्तु यही योग विशेष परिस्थितियों में व्यक्ति-विषेश में विलक्षण सोच व उत्कृष्ट विचारों का संचार करता है। जन्म लग्न के केन्द्र स्थानों में बना विष योग तो विशेष रूप से शुभ प्रभाव लिए होता है। जन्म लग्न के चैथे भाव में बना विष योग व्यक्ति-विशेष के बहुत बड़े विचारक व दार्शनिक होने का परिचायक है। ऐसे योग पर बृहस्पति ग्रह का दृष्टि-प्रभाव जहाँ व्यक्ति के उच्चकोटि के विचारक व दार्शनिक होने का द्योतक है वहीं ऐसा व्यक्ति-विशेष आध्यात्मिक प्रवृत्ति व गुण भी लिए होता है। ऐसा व्यक्ति विलक्षण विचारधारा व दार्शनिकता का प्रतिपादन करता है। ऐसे व्यक्ति के विचारों को समझना अधिकतर बहुत कठिन होता है। जन्म लग्न में ऐसे योग के रहते यदि जन्म लग्न में सूर्य ग्रह शुभ स्थिति में हो तो ऐसी अवस्था में व्यक्ति-विशेष ख्याति भी अर्जित करता है।
व्यवहार में देखा गया है कि जन्म लग्न में बने अशुभ योग जहाँ व्यक्ति-विशेष के सांसारिक जीवन से सम्बन्धित शुभ फलों में कमी लाते हैं वहीं ये योग व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर भी प्रेरित करते हैं। वास्तव में अशुभ योग व्यक्ति-विशेष के जीवन में अस्थिरता व असामान्यता लाते हैं किन्तु इन परिस्थितियों से व्यक्ति अन्ततः कुछ न कुछ उपलब्धि अवश्य प्राप्त करता है। ऐसे ही किसी विशेष अशुभ योग के प्रभाव से व्यक्ति-विशेष बहुत बड़ी उपलब्धि अर्जित कर ख्याति भी प्राप्त करता है। अशुभ योग निश्चित ही व्यक्ति-विशेष के मार्ग को कठिनाइयों से भर देते हैं किन्तु ये योग साथ ही व्यक्ति को इन कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति व संघर्ष-क्षमता भी देते हैं। वास्तव में कठिनाइयों के ये क्षण व्यक्ति-विशेष के लिए परीक्षा जैसे होते हैं जिनमें व्यक्ति अपने जीवन-निर्माण का मार्ग-प्रशस्त करता है।

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