शूलिनी विश्वविद्यालय ने ग़ैर-पैट्रोलियम संसाधनों से रसायन प्राप्त करने की नई विधि खोजी है। नीरज गुप्ता की अगुवाई में स्कूल ऑफ़ कैमिस्ट्री में हाल ही में अल्केनेस के हाइड्रोजनीकरण के लिए एक धातु-मुक्त उत्प्रेरक विकसित किया गया है। इस अध्ययन को इस साल यूनाइटेड किंगडम की रॉयल सोसाइटी ऑफ़ कैमिस्ट्री के जर्नल में प्रकाशित किया गया था।
विश्वविद्यालय पौधों के अपशिष्ट, जैसे कि चीड़ के गिरे हुए पत्तों या इसकी छाल से रसायनों को अलग करने की भी कोशिश कर रहा है, जो वर्तमान में केवल पैट्रोलियम उद्योग से प्राप्त होते हैं। यह परियोजना हिमाचल प्रदेश कॉउंसिल ऑफ़ साइंस, टैक्नोलॉजी ऐण्ड ऐनवायरनमैण्ट द्वारा वित्त-पोषित है।
इस अवधारणा को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी गई थी और यह काम विलेय और ऐलसेवियर द्वारा उनके हाल के लेखों में प्रकाशित किया गया था, जो कि कैमससकैम और सस्टेनेबल ऐण्ड रिन्यूएबल ऐनर्जी रिव्यूज़ में प्रकाशित किए गए थे।
इस शोध की टीम के सदस्यों में नीरज गुप्ता के अतिरिक्त आशिमा डोगरा, दीपिका शर्मा, मीनल वर्मा और विनीत शर्मा हैं।
विश्वविद्यालय के कुलपति पी. के. खोसला ने कहा है कि शूलिनी विश्वविद्यालय कोविड-19 के संकट के दौर में भी अनुसन्धान के क्षेत्र में आगे बढ़ने की चुनौती ले रहा है। खोसला ने कहा कि पर्यावरण प्रदूषण को कम करने और पैट्रोलियम उत्पादों को छोड़ने के लिए दुनिया को बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसके लिए नई तकनीकों का आविष्कार शूलिनी विश्वविद्यालय और वैज्ञानिकों का मुख्य केन्द्र रहा है। उन्होंने कहा कि भारत और दुनिया के सतत विकास की दिशा में योगदान करने के लिए नई तकनीकों को विकसित करने की लगातार कोशिश की जा रही है।