अब वो रास्ते नहीं

सत्य नारायण स्नेही

गाँव में आ गई है सड़क
अब नहीं रही पगडण्डियां
अब वो रास्ते नहीं
जिनसे जाते थे हम स्कूल
पशु जाते थे चरागाह
पहुँचते थे लोग दूसरे गाँव
हाट-घराट-बाज़ार।

वो रास्ते जोड़ते थे
एक घर से दूसरा घर
खेत-खलियान बाग़ान
उन पर खेलते थे बच्चे
सजती थी चौपाल।

अब गाँव में आई है सड़क
लाई है बाज़ार
नई किस्म के औज़ार
दरक गए हैं ढंकार
बन गए हैं बंगले आलीशान
बदल गया है गाँव।

अब वो रास्ते नहीं
जिन पर थिरकते थे बुआरे
गूँजते थे लोकगीत, झूरी, रैहली
बनती थी गोबराई की कतार
चलते थे सभी के सुख-दुःख एक-साथ।

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