सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
जब आवे दिन
तब देह बुझे या टूटे
इन आँखों को
हँसती रहने देना!
हाथों ने बहुत अनर्थ किए
पग ठौर-कुठौर चले
मन के
आगे भी खोटे लक्ष्य रहे
वाणी ने (जाने अनजाने) सौ झूठ कहे
पर आँखों ने
हार, दुःख, अवसान, मृत्यु का
अन्धकार भी देखा तो
सच-सच देखा
इस पार
उन्हें जब आवे दिन
ले जावे
पर उस पार
उन्हें
फिर भी आलोक कथा
सच्ची कहने देना
अपलक
हंसती रहने देना
जब आवे दिन!