एक तरफ़ तो हिमाचल प्रदेश के मुख्यमन्त्री जय राम ठाकुर द्वारा कोविड-19 से निपटने के इन्तज़ामों की बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हैं तो दूसरी तरफ़ कोविड-19 के इस दौर में हिमाचल प्रदेश के ज़्यादातर गाँव बेसहारा छोड़ दिए गए हैं। प्रदेश के ज़्यादातर गाँव जहाँ चिकित्सा-सुविधाओं से वंचित हैं वहीं कोविड-19 के मरीज़ों को अस्पताल तक पहुँचाने की भी व्यवस्था नहीं है। ऐसे में इन मरीज़ों को बिमारी के साथ इनके हाल पर छोड़ दिया गया है। कोविड-19 के मरीज़ों से चुने हुए जन-प्रतिनिधियों और आशा कार्यकर्ताओं समेत सभी ने किनारा कर लिया है। जिन आशा कार्यकर्ताओं के नाम पर राष्ट्रीय स्तर पर वाहवाही लूटी गई थी उनकी असलियत यह है कि जिन क्षेत्रों में कोविड-19 के मामले हैं, ये कार्यकर्ता वहाँ नहीं जातीं। इन आशा कार्यकर्ताओं द्वारा मरीज़ों के सम्बन्ध में जानकारी दूरभाष के माध्यम से ही जुटाई जा रही है। ये कार्यकर्ता मरीज़ों द्वारा बार-बार बुलाए जाने पर भी उनके पास नहीं जातीं। इस तरह कोविड-19 के मरीज़ों को सिर्फ़ कागज़ों में ही सहायता पहुँचाकर खानापूर्ति की जा रही है।
ग़ौरतलब है कि प्रदेश के मुख्यमन्त्री ख़ुद देश के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के सामने प्रदेश की आशा कार्यकर्ताओं के काम की तारीफ़ कर चुके हैं जिसके आधार पर प्रधानमन्त्री ने भी इनकी सराहना की थी। अब जो वास्तविकता सामने आ रही है वह इसके बिल्कुल उलट है। इससे तो यही साबित होता है कि कोविड-19 से निपटने के हिमाचल प्रदेश सरकार के दावे पूरी तरह खोखले हैं।