हिमाचल प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव अनिल कुमार खाची ने कहा है कि रासायनिक आपदाओं का मानव जीवन, बुनियादी ढाँचे, परिसम्पत्तियों और पारिस्थितिकी पर हानिकारक प्रभाव हो सकता है। अनिल कुमार खाची ने कहा कि एक वैब-आधारित रासायनिक दुर्घटना की सूचना और रिपोर्टिंग प्रणाली (सीएआईआरऐस) को उद्योगों आपदा प्रबन्धन सैल द्वारा ऐनआईसी की सहायता से विकसित किया जाना चाहिए जिसमें हानिकारक रसायनों, स्थान-मानचित्रण, प्रक्रियाओं, भण्डारण, परिशोधन, दुर्घटनाओं और उत्कृष्ट कार्यों आदि को भविष्य के सन्दर्भ के लिए संरक्षित रखा जा सके। खाची रासायनिक आपदाओं पर एक प्रशिक्षण की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे।
खाची ने कहा कि रासायनिक आपदाओं पर यह प्रशिक्षण मुख्य रूप से औद्योगिक क्षेत्रों जिनमें पाँच ज़िले काँगड़ा, कुल्लू, सोलन, सिरमौर और ऊना हैं, के लिए है। उन्होंने कहा कि इससे औद्योगिक ख़तरों के कारण उत्पन्न होने वाली सम्भावित आपदाओं से निपटने के लिए हमारी तैयारियों का पता चल सकेगा।
खाची ने कहा कि साल 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के कारण रासायनिक आपदाओं को रोकने के महत्व पर वैश्विक जागरूकता की शुरुआत हुई थी। उन्होंने कहा कि इस घटना ने देश के विधायी परिदृश्य में बड़े पैमाने पर बदलाव को प्रेरित किया और इसके बाद कई क़ानून पारित किए गए।
खाची ने राज्य में औद्योगिक घटनाओं और रासायनिक भण्डारण के लिए उचित रिपोर्टिंग प्रणाली और व्यापक आम प्रारूप में दुर्घटनाओं के साथ उचित डाटा संरक्षित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने सुदृढ़ संस्थागत प्रणाली के अलावा विशेष उपकरणों और विशेषज्ञ मानव संसाधनों का डाटा बेस बनाने की भी बात कही। खाची ने कहा कि प्रदेश में संसाधनों का सुदृढ़ डाटा बेस होना चाहिए जिसे नियमित रूप से अपडेट करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि डाटा बेस को राज्य और ज़िला मुख्यालय पर स्थापित नियन्त्रण कक्षों के साथ उपयुक्त रूप से समाहित किया जाना चाहिए। खाची ने कहा कि राज्य और ज़िलों को हर साल रासायनिक दुर्घटनाओं के लिए बड़े पैमाने पर कम से कम एक मॉकड्रिल आयोजित करनी चाहिए। उन्होंने ऐसे हादसों या रासायनिक ख़तरों के दौरान मीडिया के साथ समन्वय करने के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने का भी सुझाव दिया।